दर्पण और दीपक कभी झूंठ नहीं बोलते हैं ।जलते दीपक को कहीं भी ले जा सकते हैं , किन्तु अंधेरे को कहीं नहीं ले जा सकते हैं ।
जैन धर्म का आगम सिध्दांत; दर्पण एवं दीपक की तरह है । नकटे व कुरूप को दर्पण दिखाने से उसमें कषाय उत्पन्न होती है । चोर व्यभिचारी को रोशनी का भय सताता है ।
अज्ञानी ज्ञान दीपक का सामना नहीं कर सकताहै । व्यसनी ; दर्पण की झलक को सहन नहीं कर सकता है ।
दर्पण आदर्श को कहते हैं। दर्प जिसमें नहीं हो वह दर्पण है ।दर्पण को देखने सभी ललकते हैं लेकिन दर्पण किसी को देखने नहीं ललकता यही उसका आदर्श है । जो दर्पण; पत्थर से नहीं डरता वही दर्पण है । जोदीपक ; आंधियों से नहीं घबराता वही दीपक है ।कोई हमारा पता जानना चाहे तो हम यही कहते हैं
” आंधियों के बीच जो जलता हुआ मिल जाएगा ।
उस दिये से पूछना मेरा पता मिल जाएगा ।।
अय! आंधियों अपनी ओकात मेंरहो ।
हमतो जलते हुए दिए हैं जलते हीरहेंगे ।।”