पूज्य श्री गणेशप्रसाद वर्णी की बगिया के अंतिम पुष्प अपनी सुगंध विखराते हुये इस नश्वर शरीर को छोड़ कर महाप्रयाण कर गये । आप उनके अनन्य भक्त तथा सुयोग्य शिष्य थे, आपने पूज्य बाबा वर्णी जी के विचारों को अपने जीवन में अक्षरस: आत्मसात किया था और अंत तक उनका पालन करते रहे ।
आपका जन्म 21 अप्रेल 1932 को रीठी जिला कटनी में हुया, अल्पकाल में ही माता-पिता का वियोग होने पर बड़े भाई श्री नीरज जी और बहिन सुमित्रा जी (समाधिस्थ आर्यिका माँ श्री विशुद्धमति माताजी ) के दिशा निर्देशन में आप जैन आगम का गहन अध्ययन करके प्रसिद्ध विद्वान बन गये । आपके जाने से निश्चित रूप से विद्वत समाज में एक रिक्तता आ गई है, वे विद्वत समाज के सर्वमान्य और माँ जिनवाणी की निस्वार्थ सेवा के प्रतिरूप थे । बड़े ही संघर्ष शील जीवन को बड़ी ही विनम्रता से ना केवल उन्होंने जिया वरन हम सभी परिवार के भाई बहिनों को भी इसकी प्रेरणा दी । बड़े भाई विद्वतश्रेष्ठ श्री नीरज जी की हर बात को पितृतुल्य आत्मसात करना, बड़ी बहन पूज्य समाधिस्त आर्यिका श्री विशुद्धमति जी माताजी के हर आदेश को सहज भाव से स्वीकार करना आदरणीय मामा श्री निर्मल जी के व्यक्तित्व को और निखार देता है ।
वह हमारे मामाजी थे परन्तु हमें उनका अशीष सदैव एक परिवार के मुखिया की तरह ही मिलता रहता था, हमें बचपन से ही उनके समीप बैठने का मौका मिलता रहा, वे बहुत अच्छा बोलते थे, उनकी वाक् पटुता और प्रवचनशैली गज़ब की थी, जब भी उनसे मिलना होता था, उनसे आगम की धार्मिक/सामाजिक चर्चा के साथ अपने संघर्षमय जीवन के अनुभव/संस्मरण सुनने को अवश्य मिलते थे, जो हमें ना केवल अपने व्यक्तिगत जीवन में वरन सामाजिक जीवन के लिये बहुत लाभप्रद सिद्ध हुये ।
शाकाहार के लिये आप पूर्णत: समर्पित थे और जीवन भर इसके प्रचारक रहे, आपकी प्रेरणा से मुझ जैसे ना जाने कितने व्यक्तियों को शाकाहार/जीवदया के प्रचार-प्रसार करने की प्रेरणा मिली । शाकाहार प्रचार के लिये आयोजित की गयीं विभिन्न संगोष्ठियां/सेमिनार/कार्यक्रम में आपकी उपस्थिति ही उसकी सफलता होती थी, आपके द्वारा दिये गये तर्क युक्त उदबोधनों से कई लोगों ने मांसाहार का त्याग करके शाकाहार को अपनाया । इसके लिये हमने विभिन्न कार्यक्रम उनके आतिथ्य में आयोजित किये । गोमटेश्वर बाहुबली मस्तिकाभिषेक 1993 में आपके संयोजन में आयोजित विशाल शाकाहार सम्मेलन/प्रदर्शनी/प्रशिक्षण शिविर की सफलता शाकाहार/जीवरक्षा के प्रति आपके समर्पण को बयां करती है ।
आ. निर्मल जी जैनागम के भी अध्येता विद्वान थे, देश के समस्त मुनिराजों का वरदहस्त उनको प्राप्त था, कई मुनिराजो के साथ तत्वचर्चा कर आगम के गूढ़ रहस्यों पर चर्चा करना उनको आनंदित कर देता था, आप महीनों आचार्य श्री विद्यानंद जी, आचार्य श्री विद्यासागर जी, आचार्य श्री वर्धमानसागर, आचार्य विरागसागर जी आदि आचार्यों के संघ में रह कर वैयावृति करते हुये मुनिराजों को अध्यापन कराते रहते थे । पूज्य आचार्य विशुद्धसागर जी, पूज्य मुनि श्री क्षमासागर जी अक्सर कई बार अपने प्रवचनों में आपका उल्लेख किया करते थे तथा अन्य साधुसंत भी आपके इस विनम्र व्यक्तित्व की हमेशा सराहना करते थे ।
आप एक प्रभावी प्रवचनकार थे हमेशा आगमोक्त और प्रमाणिक बात ही करते थे, आपकी उत्कृट सरल स्वभावी प्रवचनशैली के कारण ना केवल छोटे छोटे गाँव, वरन महानगरों और विदेशों तक की समाज आपको अपने यहाँ आमंत्रित करती रहती थी । आपने गृहस्थ रहते हुये श्रावक धर्म को अपने जीवन में पूर्णत: उतार लिया था, वर्ष 1991 में पूज्य मुनि श्री क्षमासागर जी से ब्रम्हचर्य व्रत लेकर उनकी पिच्छिका प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त किया था ।
सरस्वती पुत्र के साथ लक्ष्मी पुत्र भी थे, दानशीलता आपके व्यक्तिव का एक और गुण है, वैश्विक महामारी कोरोना के इस दौर में आपने देश हित में प्रधानमंत्री राहत कोष में पाँच लाख रूपये का दान स्वयं जाकर कळेक्टर को दिया था ।
आपका पूरा परिवार उच्चशिक्षित और संस्कारवान है जिसमें पूज्य आर्यिका विशुद्धमति माताजी के द्वारा दिये गये संस्कार, दादा नीरज जी का अनुशासन और आपकी विनम्रता सदैव झलकती है । आपके बड़े पुत्र श्री सुधीर जैन बहुमूल्य वस्तुओं के प्रसिद्ध संग्रहकर्ता हैं, तथा छोटे बेटे श्री सतीश भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत अधिकारी हैं ।
आ. निर्मल जी अब भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच में नहीं हो परन्तु उनके व्यक्तित्व निर्माण के ये गुण सदा ही उन्हें जीवन्त रखेंगे, वे अंत तक निर्मल ही बने रहे । वीर प्रभु से हम कामना करते हैं कि ऐसे निर्मल परिणामी श्री निर्मल जी को सद्गति प्राप्त हो ।
चरणों में सादर नमन ! !??
विनम्र श्रद्धांजलि !!??
– सुरेश जैन “मारौरा”, इंदौर