विश्व में जैन धर्म की पताका फहराने वाले जैन संत – मुनि श्री सुशील कुमार जी के जन्मदिन (जून 15) पर स्मरण
आज हम सब जानते हैं कि अमेरिका में अब दर्जनों विशाल जैन मंदिर हैं। JAINA जैसी प्रभावशाली संस्था है जो कि प्रवासी जैनों को जोड़े रखने में और उन्हें अपनी जड़ों से संयुक्त बने रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। आज UN और अमेरिकी संसद द्वारा जैन संत डॉ लोकेश मुनि जी को संबोधन देने के लिये आमंत्रित कर जैन सिद्धांतों का सम्मान किया जाता है। आज से पांच दशकों पूर्व यह सब सोचना संभव नहीं था। इन सबके पीछे जिनकी परिकल्पना थी, जिनका आईडिया सक्रिय था, उनमें से एक थे गुरूजी मुनिश्री सुशील कुमार जिनका कि जन्मदिन 15 जून है और दूसरे थे गुरूदेव श्री चित्रभानु जी (जिनका कि स्वर्गवास 96 साल की उम्र में पिछले साल ही अप्रैल 19, 2019 को मुंबई में हुआ)।
आचार्य श्री सुशील मुनि (15 जून1926- 22 अप्रैल 1994) बीसवीं सदी के जैन समाज
की एक ऐसी विभूति हुये हैं जिनका कि योगदान विश्व भर में जैन धर्म का प्रचार-प्रसार करने में अद्वितीय रहा है। यह बात अलग है कि अपनी-अपनी संकुचित मानसिकता की परिधि में जकड़े विभिन्न संप्रदायों के अनुयाईयों-चिंतकों-साधकों की दृष्टि में इसका समुचित मूल्यांकन न हो सका है और न हो सकेगा। पर मानें या न मानें, सत्य यही है कि संयुक्त राष्ट्र जैसे विशाल मंचों पर से विश्व पटल पर महावीर के अहिंसा और अनेकांतवाद समाहित सिद्धांतों की
सार्वभौमिकता स्वीकार करा पाने में उनकी भूमिका सर्वोपरि रही। भारत देश के अंदर जैन धर्म का प्रचार और विदेश के अंदर धर्म प्रचार- दोनों का परिप्रेक्ष्य बिल्कुल अलग है।
उन्होंने परंपरागत जैन मान्यता से अलग हटकर विदेश गमन किया और अमेरिका में भगवान महावीर के सिद्धांतों का प्रचार किया तथा वहां प्रथम जैन आराधना स्थल सिद्धाचल की स्थापना की। सैकड़ों विदेशियों को अहिंसा के पथ पर दीक्षित किया।
वे अहिंसा के प्रचार-प्रसार, समन्वयवादी दृष्टिकोण और सर्व-धर्म समभाव को विशेष महत्व देते थे।उनके व्यापक दृष्टिकोण के कारण भारत की तत्कालीन सरकारों में उनका जो रसूख था उसने सरकारी तंत्र में जैन धर्म की आवाज को सदैव मुखर बनाये रखा। कोई भी आध्यात्मिक, धार्मिक, विश्व शांति आदि का कार्य सरकारी व राष्ट्रीय स्तर पर तभी सुसंपन्न हो पाता था, जब उनका दखल उसमें होता था। उस समय आजकी तरह का डिजिटल मीडिया नहीं था। प्रिंट मीडिया था। सो प्रिंट मीडिया उनके विचारों, समाचारों और चित्रों से भरपूर रहता था।
उनकी सर्वमान्यता का आईडिया इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस समय पंजाब उग्रवाद की आग में जल रहा था और यह उस समय सरकार और देश के सामने, कोरोना की तरह ही विकराल समस्या थी। शांति स्थापित करने के लिये उग्रवादियों और सरकार को बातचीत के स्तर तक ले आ पाने के मध्य उनकी बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका रही जिसकी कि आज सामान्य कल्पना भी कर पाना संभव नहीं है।
हमारे देश का प्रधानमंत्री चाहे स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी रही हों, चाहे स्व. श्री मोरारजी देसाई रहे हों या फिर स्व. श्री राजीव गांधी, सबके दिल में आचार्य श्री सुशील कुमार जी के लिये सम्मान था।
जैन एकता के लिये वे सदैव सक्रिय रहे। जबकि यह बिडंबना ही है कि जन्मना वे ब्राह्मण थे। सन् 1975 में भगवान महावीर स्वामी के 2500वां निर्वाण महोत्सव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया गया था। उसके सारथियों कीअग्रिम पंक्तियों में थे वे।
जैन सिद्धांतों का सर्वमान्य सार ग्रंथ- समणसुत्तं, जिसे कि जैन गीता भी कहा जाता है, के लिये सर्व-ग्राह्यता के लिये उन्होंने महती भूमिका निभाई। भूदान-यज्ञ प्रणेता बाबा बिनोबा भावे उनके बड़े प्रशंसकों में से एक थे। वे गौरक्षा के लिये भी सदैव सक्रिय रहे। गौवंश की रक्षा के लिये समस्त साधु समाज को एकजुट कर गोहत्या के विरोध में उन्होंने देशव्यापी आंदोलन जारी रखा।
नई दिल्ली में शंकर रोड स्थित सुशील मुनि आश्रम में स्थापित जैन मंदिर देश का पहला ऐसा जैन मंदिर है जिसमें कि एक ही वेदी पर श्वेतांबर जिन बिंब, दिगंबर जिन प्रतिमा और जिनवाणी विराजमान है। मैं इस मंदिर में जैन एकता का जीता जागता व्यावहारिक स्वरूप देखता हूं- उनकी व्यापक और दूरगामी सोच। इसके दर्शन ने ही मुझे यह लेख लिखने के लिये प्रेरित किया है। आज अमेरिका, इंग्लैंड आदि सुदूरवर्ती देशों में अगर जैन एक सूत्र में बंधकर रह पा रहे हैं तो इसी पद्धति का अनुपालन करके। हमारे महावीर एक हैं, हम अपनी-अपनी भावनाओं के साथ उनकी आराधना करलें, कर सकें.. पर साथ-साथ एक दूसरे के प्रति सद्भावना तो बनाकर रखें।
श्री सुशील मुनि आश्रम के द्वारा नित्य अति निम्न मूल्य पर प्रासादी वितरण की जाती है ताकि सामान्य व्यक्ति शाकाहारी बना रह सके। शाकाहार के प्रचार प्रसार के लिये यह गजब की सोच थी उनकी।
यह सत्य अवश्य विचलित करता है कि घर का जोगी जोगिया और आन गांव का सिद्ध की कहावत के अनुसार, श्री सुशील कुमार जी का सम्मान अन्यों में अधिक था पर अपने ही घर में विरोध।
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आचार्य श्री सुशील कुमार जी के 94 वें जन्म दिवस पर उनके प्रति जैन न्यूज़ टाईम्स परिवार का ह्रदय से विनम्र प्रणाम। ??