अक्षय निधि व्रत

 

अक्षयनिधिनियमस्तु श्रावणशुक्ला दशमी भाद्रपदशुक्ला तत्कृष्णा चेति दशमीत्रयं पञ्चवर्षे यावत् व्रतं कार्यम्; दशमीहानौ तु नवम्यां वृद्धौ तु यस्मिन् दिने पूर्णा दशमी तस्मिन्नेव दिने व्रतं कार्यम्; वृद्धिगततिथौ सोदयप्रमाणेऽपि व्रतं न कार्यम्।

अर्थ-अक्षय निधि व्रत श्रावण शुक्ला दशमी, भाद्रपद कृष्णा दशमी, भाद्रपद शुक्ला दशमी, इस प्रकार तीन दशमियों को किया जाता है। यह व्रत पाँच वर्ष तक करना होता है। दशमी तिथि की हानि होने पर नवमी को व्रत और दशमी तिथि की वृद्धि होने पर जिस दिन पूर्ण दशमी हो उस दिन व्रत किया जाता है। वृद्धिंगत तिथि छ: घटी से अधिक हो तो भी दूसरे दिन व्रत करने का विधान नहीं है। यह व्रत वर्ष में तीन दिन से अधिक नहीं किया जाता है, तिथि वृद्धि होने पर भी एक दिन अधिक करने का नियम नहीं है।

विवेचन-अक्षयनिधि व्रत श्रावण सुदी दशमी, भादों वदी दशमी और भादों सुदी दशमी इन तीनों दशमी तिथियों को वर्ष में एक बार किया जाता है। इस व्रत का दूसरा नाम अक्षयफल दशमी व्रत भी है। अक्षयनिधि व्रत करने वाले को दशमी के दिन प्रोषध करना चाहिए। गृहारंभ छोड़कर श्रीजिन-मंदिर में जाकर भगवान आदिनाथ का अभिषेक और पूजन करना चाहिए। ‘ॐ ह्रीं नमो ऋषभाय’ इस मंत्र का जाप उपवास के दिन १००८ करना चाहिए। रात्रि में जागरण, शक्ति न होने पर अल्प निद्रा ली जाती है। धर्मध्यान व्रत के दिन विशेषरूप से किया जाता है। शीलव्रत श्रावण सुदी नवमी से लेकर भादों सुदी एकादशी तक इस व्रत के धारी को पालना चाहिए।