आचार्य शिरोमणि श्री धर्मसागर जी महाराज अपने आगम सिद्धान्तों से कभी भी समझौता नहीं करते थे – प्रज्ञाश्रमण अमितसागर जी महाराज

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बिंशतिशताब्दौ परम्परागते प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती श्री शान्तिवीर शिवधर्माजित- श्रेयांशाभिनन्दनानेकान्त सूरिभ्यो नमों नमः ।

प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज के तृतीय पट्टाधीश आचार्य शिरोमणि श्री धर्मसागर जी महाराज के लघु शिष्य 12631328_1669110236703173_7081837497749204936_n ने आचार्य शिरोमणि श्री धर्मसागर जी महाराज के 103 वे जन्म जयंती महोत्सव पर इटावा में आयोजित विन्यांजलि सभा में कहा है कि आचार्य श्री अपने आगम सिद्धान्तों से कभी भी समझौता नहीं करते थे । इसका उदहारण दिल्ली का 2500वाँ निर्वाण दिवस है ।

इसीप्रकार आचार्यश्री संघ के अनुशासन में अत्यन्त कठोर थे, इसका उदाहरण 7 सितम्बर सन् 1977 किशनगढ़ में मुनिश्री वर्धमानसागर जी महाराज को मुनिदीक्षाछेद कर प्रायश्चित दिया था ।1984 में हमारी दीक्षा के बाद संघ में हम दो तीन साधू शिखर जी वंदना को जाना चहाते थे आचार्य श्री से कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी । मैंने हिम्मत कर निवेदन किया तब उन्होंने कहा शिखरजी जाना चा हता है चला जा मेरी पिछी कमंडल यहाँ रख जा । समाज से भीख मागेगा भीख की हमारे विहार की व्यवस्था कर दो ।वह दिन था उसके बाद उनकी समाधी तकउनके साये से भी दूर नहीं रहे ।

आचार्यश्री, साधुओं के एकल विहार एवं उनके द्वारा चन्दा-चिट्ठा करने का तीव्र विरोध करते थे । आचार्यश्री होकर भी साधुओं से प्रतिवन्दना किया करते थे, निष्प्रहता, निश्छलता, निराभिमानता उनके विशेष गुण थे । ऐसे गुरु को अनन्तसः नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु ।

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