18 साल की ये लड़की छह बड़े शिविरों में दे चुकी है प्रवचन। शास्त्री का चार वर्ष का पाठ्यक्रम पूरा कर दीक्षांत समारोह में हुईं हैं सम्मानित।
कॉन्वेंट स्कूल से प्राइमरी एंड मिडिल एजुकेशन हासिल करने के बादमध्यप्रदेश केखंडवाकी शचि का मन जैनिज्म में रम गया। ये ग्रंथों का अध्ययन कर रहीहैतो वहीं वीर प्रभु के शासन की महती प्रभावना करते हुए जिनवाणी माता को कंठ में विराजमान कर रही है। 1999 को जन्मीं ये बेटी इतनी कम उम्र में छह बड़े शिविरों में प्रवचन दे चुकी है।
खंडवाके राय साहब परिवार में पली-बढ़ी आत्मार्थी शचि जैन बीते 4 वर्ष से आत्मार्थी कन्या विद्या निकेतन दिल्ली में विदुषी राजकुमारी दीदी के निर्देशन में स्कूली पढ़ाई के साथ-साथ जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांत व विभिन्न ग्रंथ पर भी अध्ययन कर रही हैं। बीते महीने ही दिल्ली में शास्त्री का चार वर्ष का पाठ्यक्रम पूर्ण करने पर दीक्षांत समारोह में सम्मानित किया गया था।
फैमिली से मिले गुण, अब कर रही धर्म प्रभावना
सिटी के जैन मुमुुक्षु फैमिली के राजा बहादुर-शिरोमणि जैन की पोती व समकित-सुरभि जैन की बेटी शचि ने अपना प्राइमरी एजुकेशन सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल व भंडारी पब्लिक स्कूल से किया। 9वीं से आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली के के आत्मार्थी कन्या विद्या निकेतन व बाल भारती स्कूल बहादुरगढ़ को चुना। फादर समकित जैन ने बताया कि शचि को धर्म के संस्कार विरासत में मिले हैं। मां सुरभि जैन साधर्मियो को प्राकृत विश्वविद्यालय के माध्यम से प्राकृत भाषा का अध्ययन करा रही हैं। 4 वर्ष के अध्ययन काल में शुचि ने चारों अनुयोगों के ग्रंथों का अध्ययन कर देश के विभिन्न प्रांतों में स्वाध्याय के द्वारा धर्म प्रभावना का कार्य किया है।
एक नजर में…
– लास्ट इयर शचि ने मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रंथ का स्वाध्याय कराया था। हाल ही में दिल्ली में व्याख्यानमाला में समयसार ग्रंथ पर प्रवचन करके सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया था।
– शचि मातृभाषा हिंदी एवम् प्राकृत के साथ-साथ अब अंग्रेजी में भी स्वाध्याय करने के लिए प्रयासरत हैं। जिससे विदेश में रहने वाले साधर्मीजन को भी शास्त्र स्वाध्याय का लाभ मिले।
आज बच्चों द्वारा घरों में, स्कूलों में अमर्यादित आचरण फैशन बनता जा रहा है। हम स्कूलों में मात्र परीक्षा पास होने की शिक्षा दे रहे हैं जबकि सच्चाई यह है कि जीवन में उत्थान के लिए मात्र लौकिक शिक्षा ही नहीं, बल्कि आत्मा का ज्ञान भी जरूरी है। लौकिक ज्ञान से सुख, शांति, समृद्धि मिले ही ये कोई गारंटी नही है, लेकिन जिनवाणी माता की शरण से जीवन की अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में सामंजस्य बनाने का मार्ग अवश्य मिलता है।