गिरनार में द्विदिवसीय राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी सम्पन्न

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गिरनार। 17 फरवरी 2020। विश्वशांति निर्मल ध्यान केन्द्र, गिरनार तलैटी, भवनाथ, जूनागढ़ (गुज.) द्वारा बीसवीं शती के श्रमण परम्परा के पुनरुद्धारक चारित्रचक्रवती आचार्य श्री शांतिसागर जी (दक्षिण) के मुनि दीक्षा शताब्दी समारोह की स्मृति स्वरूप एवं प्रशांतमूर्ति आचार्य श्री शांतिसागर जी (छाणी) के समाधि हीरक महोत्सव के स्मृति स्परूप दोनों आचार्यों की मूर्ति प्रतिष्ठापना के अवसर पर श्री अ.भा.दि.जैन विद्वत्परिषद के तत्त्वावधान में दिनांक 15 एवं 16 फरवरी 2020 को द्विदिवसीय राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन परमपूज्य गिरनारगौरव आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज ससंघ के पावन सान्निध्य में उनके आशीर्वाद एवं प्रेरणा से किया गया। इसकी निर्देशिका ब्र. शान्ताबेन, अधिष्ठाता ब्र. सुमत भैयाजी, अध्यक्ष डाॅ. भागचन्द्र जैन ‘भास्कर’, और संचालक महामंत्री डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ थे।
संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र 15 फरवरी को प्रातः 9 बजे सम्पन्न हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता विद्वत् परिषद् के उपाध्यक्ष डाॅ. सनतकुमार जैन जयपुर ने की, संचालन विद्वत्परिषद् के महामंत्री व संगोष्ठी के संयोजक डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर ने किया।
मंगलाचरण, आचार्यद्वय का चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन, आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज के पाद-प्रक्षालन, शास्त्र भेंट के उपरान्त विश्वशान्ति निर्मल ध्यान केन्द्र, गिरनार ट्रस्ट के ट्रस्टी श्री ज्ञानचंद जैन-मुंबई ने आगत विद्वानों के स्वागत में स्वागत भाषण देते हुए देश के कोने कोने से पधारे विद्वानों का स्वागत तिलक, माल्यार्पण, अंगवस्त्र व किड प्रदान करके किया। डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की, डाॅ. नीलम जैन-पुणे ने अपना वक्तव्य देते हुए गिरनार गौरव आचार्यश्री निर्मलसागर जी महाराज के उपकार व कृतित्व पर प्रकाश डाला। इस उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष के अघ्यक्षीय वक्तव्य के उपरान्त आचार्यश्री का प्रवचन हुआ।
संगोष्ठी का द्वितीय सत्र अपराह्न 2 बजे प्रारंभ हुआ। जिसकी अध्यक्षता डाॅ नरेन्द्रकुमार जैन, गाजियाबाद ने की, संचालन डाॅ. नीलम जैन, पुणे ने किया। इस सत्र में प्रो. प्रेम सुमन जी, उदयपुर के ‘‘अपभ्रंश साहित्य में अंकित नेमिनाथ चरित एवं गिरनार।’’ आलेख का , डाॅ. सरोज जैन, उदयपुर के ‘‘ऊर्जयंत गिरनार विषयक प्राकृत के सन्दर्भ।’’ का वाचन किया गया। पं. लोकेश जैन-गनोडा (राज.) ने संस्कृत-आलेख ‘‘तीर्थरक्षा-शिरोमणि श्रमणरत्नः गिरनार-गौरवः’’ विषय पर किया, श्रीमती कामनी जैन-जयपुर ने ‘‘आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज के पट्टप्रवर्तक प्रशममूर्ति आचार्य श्री शांतिसागर जी (छाणी) द्वारा कुरीतियों का खण्डन।’’ विषय पर, श्रीमती आशा जैन, इन्दौर ने ‘‘आचार्यश्री निर्मलसागर जी महाराज और उनका पट्टाचार्य पद’’ विषय पर, इंजी. दिनेश जैन, दुर्ग ने ‘‘आचार्य श्री निर्मलसागर जी एवं उनकी पूर्व परंपरा’’, विषय पर और पं. शीलचंद शास्त्री, ललितपुर, ने ‘‘संगति सच्चे साधु की’’ विषय पर अपने   आलेख का वाचन किया। अध्यक्षीय वक्तव्य में आलेखों की समीक्षा के उपरान्त पूज्य मुनिश्री नयनसागर जी महाराज व आचार्यश्री निर्मलसागर जी महाराज के प्रवचन हुए।
तृतीय सत्र सायं 7 बजे प्रारम्भ हुआ। मंगलाचरणोपरान्त अध्यक्षता हेतु प्रतिष्ठाचार्य पं. विनोदकुमार जैन-रजवांस का मनोनयन हुआ, पं. सुकुमाल चंद जैन ने सारस्वत आतिथ्य गृहण किया, इंजी. श्री दिनेश जैन -भिलाई ने सत्र का संचालन किया। इस सत्र में ग्यारह आलेखों का वाचन हुआ। डाॅ. शोभालाल जैन, जयपुर ने ‘‘भारतीय वाड्.मय में भगवान नेमिनाथ और गिरनार-ऊर्जयन्तगिरि पर्वत’’ विषय पर, पं. भीमराव हेमगिरे ने ‘‘श्रुतस्कंध अहिंसा रथ: काश्मीर से कन्याकुमारी तक 24 मई 2004 से 80 हजार किलोमीटर की रथयात्रा उपलब्धि व संस्मरण।’’ विषय पर, डाॅ. ममता जैन-पुणे ने ‘‘नारी का गौरव गिरि गिरनार आचार्य श्री निर्मलसागर जी के आशीषांचल में’’ विषय पर, पं. प्रशांत जैन, मडावरा ने  ‘‘परम्पराचार्य श्री शांतिसागर जी (छाणी) द्वारा बुन्देलखण्ड में धर्म प्रभावना’’ पर, पं. रजनीश जैन, बनेठा ने ‘‘गिरनार तीर्थ संरक्षणार्थ समर्पित संत’’ विषय पर, पं. कोमलचंद जैन, वाराणसी ने ‘‘महापुराण साहित्य में भगवान नेमिनाथ के सन्दर्भ।’’ विषय पर, डाॅ. सुशील जैन, कुरावली ने ‘‘आचार्य श्री निर्मलसागर जी विश्व की महान विभूति’’ पर, ब्र. रमेश जी, सहारनपुर ने ‘‘आचार्य परमेष्ठि आगम के आलोक में।’’ पर, डाॅ. बाहुबली जैन, किशनगढ़ ने ‘आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज (छाणी) की राजस्थान प्रांत में प्रभावना एवं ऐतिहासिक ब्यावर चातुर्मास।’’ पर और सारस्वत आतिथ्य वक्तव्य में पं. सुकुमाल जी, सहारनपुर ने ‘‘सामाजिक समरसता संवर्धन में और समाजोत्थान में श्रमणों का अवदान: आचार्य श्री निर्मलसागरजी के आलोक में।’’ पर और 
श्रीमती सुमनलता जैन, सागर, ने ‘‘गिरनार तीर्थ संवर्धन में आचार्य श्री निर्मलसागर जी का अवदान’’ विषय पर आलेख वाचन किया। अंत में सत्र संचालक ने आभार प्रदर्शित किया।
दिनांक 16 फरवरी को प्रातः 8 बजे से गुरु-पूजा, पाद-प्रक्षालन, शास्त्र-भेंट के उपरान्त संगोष्ठी का चतुर्थ सत्र प्रारंभ हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता पं. भरत काला- मुंबई ने की, संचालन डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ ने किया। प्रथम प्रति. पं. विनोद जी रजवांस ने ‘‘हमारी श्रुत परम्परा और उसके संरक्षण में गिरनार गौरव आचार्यश्री निर्मलसागर जी महाराज को अवदान।’’ विषय पर आलेख वचान किया, तदोपरांत डाॅ. नीलम जैन, पुणे ने ‘‘यशस्वी परम्परा के संवाहक आचार्यश्री निर्मलसागर जी महाराज’’ विषय पर, पं. इन्द्रसेन जी, सहारनपुर ने ‘‘आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज के शिष्यों द्वारा धर्म प्रभावना’’ पर, पं. सनतकुमार जैन, रजवांस ‘‘जैन संस्कृति के संवर्धन का संगीत एक सशक्त माध्यम: नेमि-राजुल के गीतों के सन्दर्भ में।’’ विषय पर, प्रो. सनतकुमार जैन, जयपुर ने ‘‘तीर्थभूता हि साधवा’’ विषय पर आलेख वाचन किया। पं. भरतकुमार काला, मुबई ने अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए आलेखों की समीक्षा की और अपने आलेख ‘‘गिरनार गौरव आचार्यश्री निर्मलसागर जी महाराज के बोरीवली एवं मुंब्रा- मुंबई में चातुर्मास उपलब्धियां एवं संस्मरण।’’ का वाचन किया। संयोजक के धन्यवाद ज्ञापन के उपरान्त पूज्य मुनिश्री नयनसागर जी महाराज व गिरनार गौरव आचार्यश्री निर्मलसागर जी महाराज के प्रवचन हुए।
दोपहर 1: 30 बजे पंचम सत्र प्रारंभ हुआ। विद्वत् परिषद् के उपाध्यक्ष डाॅ. सनतकुमार जैन-जयपुर ने अध्यक्षता की। इसमें डाॅ. नरेन्द्रकुमार जैन, गाजियाबाद ने ‘‘संस्कृत साहित्य में गिरनार क्षेत्र का महत्व’’ विषय पर, डाॅ. भरतकुमार जैन, इन्दौर ने ‘‘आचार्यश्री निर्मलसागर जी महाराज का ससंघ इन्दौर चातुर्मास एवं उसकी उपलब्धियां’’ विषय पर आलेख प्रस्तुत किये। तदुपरांत विद्वत् परिषद् का अधिवेशन प्रारंभ हुआ।
श्री अ.भा. दि.जैन विद्वत् परिषद् का खुला अधिवेशन-
दोपहर 2 बजे से गिरनार गौरव आचार्यश्री निर्मलसागर जी महाराज के ससंघ सान्निध्य में श्री अ.भा. दि.जैन विद्वत् परिषद् का खुला अधिवेशन हुआ। पं. शीलचंद जैन के मंगलाचरण के उपरान्त कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। विद्वत् परिषद् के महामंत्री डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’- इन्दौर ने विद्वत् परिषद् की रिपोर्ट प्रस्तुत की। विद्वत् परिषद् के अध्यक्ष प्रो. भागचंद जैन ‘भास्कर’-नागपुर द्वारा लिखित अध्यक्षीय भाषण पढ़ा गया। डाॅ. नरेन्द्रकुमार जैन-गाजियाबाद  ने ‘गिरनार गौरव अभिवंदना’ ग्रन्थ का प्रस्ताव पढ़ा, जिसका सर्व सम्मति से समर्थन किया गया। डाॅ. सनतकुमार जैन- जयपुर ने ‘‘समाज से अपील’’ पढ़ी जिसे पारित किया गया और इंजी. श्री दिनेश जैन-दुर्ग ने ‘जीर्णोद्धार के नाम पर विध्वंस न किया जाय’ प्रस्ताव प्रस्तुत किया, डाॅ. सुशील जैन-कुरावली ने अनुमोदना की व सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया।
अधिवेशन में निम्नाकित- प्रो. नरेन्द्रकुमार जैन- गाजियाबाद, प्रो. सनत कुमार जैन-जयपुर, डाॅ. नीलम जैन, पुणे, प्रति. पं. विनोद कुमार जैन, रजवांस, इंजी. दिनेश जैन,  दुर्ग, पं. भरत जैन-इन्दौर, डाॅ. बाहुबली जैन-किशनगढ़, डाॅ. कामनी जैन-जयपुर, डाॅ. लोकेश जैन-गनोडा, डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’- इन्दौर, डाॅ. ममता जैन-पुणे, पं. प्रशांत जैन-मडावरा, ब्र. पं. रमेश जैन-सहारनपुर, पं. भीमराव हेमगिरे-कोल्हापुर, पं. इन्द्रसेन जैन- सहारनपुर, पं. सुकुमाल जी-सहारनपुर, पं. आशीष जैन-वाराणसी, पं. शीलचंद जैन-ललितपुर, ब्र. सुमत भैया जी- गिरनार, ब्र. विनय भैया जी- उदयपुर, डाॅ. शोभालाल जैन-जयपुर, पं. सुरेन्द्र कुमार जैन-बड़ागांव, डाॅ. सुशील जैन-कुरावली, पं. सनत जैन-रजवांस, श्रीमती सुमनलता जैन-सागर, पं. भरतकुमार काला-मुबई, श्रीमती आशा जैन-इन्दौर, पं. ऋषभ जैन-राहतगढ़, पं. अशोक साहित्याचार्य, आचार्य अशोक जैन- मैनवार, पं. ऋषभ जैन-ललितपुर, पं. संतोष जैन-बड़ागांव, पं. अरिहंत जैन-बम्हौरी आदि 55 विद्वान् सम्मिलित हुए। 
विद्वत् परिषद् के अधिवेशन में दो प्रस्ताव व एक अपील-
श्री अ.भा. दि.जैन विद्वत् परिषद् का खुला अधिवेशन सम्पन्न हुआ, उसमें निम्नांकित दो प्रस्ताव व एक अपील पारित की गई।
प्रस्ताव नं. 1
विश्वशांति निर्मल ध्यान केन्द्र गिरनार में आयोजित राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी एवं श्री अ.भा. दि.जैन विद्वत् परिषद् के अधिवेशन में उपस्थित समस्त सदस्यों की ओर से प्रस्ताव है कि तीर्थराज गिरनार क्षेत्र पर तथा कथित लोगों द्वारा किये जा रहे उपसर्ग को अपनी तपोसाधना व वात्सल्य भाव के प्रभाव से दूर करने का निरन्तर प्रयास कर रहे गिरनार गौरव आचार्य री निर्मलसागर जी महामुनिराज के प्रति श्री अ.भा. दि.जैन विद्वत् परिषद्  आचार्यश्री निर्मलसागर ‘‘गिरनार-गौरव अभिवंदना’’ ग्रन्थ के द्वप अघ्र्य समर्पण का भाव सर्व सम्मति से प्रस्ताव रखती है।
प्रस्तावक:   डाॅ. नरेन्द्रकुमार जैन – गाजियाबाद
समर्थक : प्रतिष्ठाचार्य पं. श्री विनोदकुमार जैन, रजवांस
प्रस्ताव नं. 2
वर्तमान में जीर्णोद्धार के नाम पर जैन संस्कृति की धरोहर प्राचीन जिनबिम्बों, जिनायतनों को विलोपित करना सर्वथा अनुचित है, यह नवदेवताओं (चैत्य, चैत्यालयों) की अवमानना है। जैन संस्कृति, तीर्थों का जीर्णोद्धार करना ही सर्वश्रेष्ठ है न कि समूल विनष्ट करना। अतः सभी जैन श्रमण संस्कृति के उपासकों से अनुरोध है कि मात्र जीर्णोद्धार कर संरक्षण कर प्राचीनता को अक्षुण्ण रखने में सहयोग करें।
प्रस्तावक: पं. इंजी. दिनेश जैन, भिलाई
समर्थक : डाॅ. सुशील जैन, कुरावली
अपील-
श्री अ.भा. दि.जैन विद्वत् परिषद् के अपने वार्षिक खुला अधिवेशन में सभी जैन संस्थाओं एवं समाज से विनम्र अपील करती है कि पावन तीर्थ क्षेत्र श्री सिद्धक्षेत्र गिरनार जी में आने को सभी श्रद्धालुओं, श्रावकजनों को प्रेरित करें, यात्राओं का आयोजन करें। उन्हें विस्तार से बतायें कि क्षेत्र पर सर्व सुविधायुक्त आवास व्यवस्था, भोजन व्यवस्थादि उपलब्ध है। पर्वत जी की यात्रा में किसी प्रकार की असुविधा, असुरक्षादि नहीं है, निर्भय होकर पूर्ण भक्ति-भाव से यात्रा के माध्यम से आत्मा को परमात्मा से भवनातंत्रों के माध्यम से जोड़ने का आत्मानंद प्राप्त करें। श्री गिरनार जी क्षेत्र में जैनियों का आवागमन अत्यंत अल्प होने के कारण जैनियों के तीर्थ क्षेत्र की मान्यता को खोता सा जा रहा है। हम सबका पुनीत कर्तव्य है कि इस क्षेत्र को सुरक्षित रखने के लिए अधिक से अधिक संख्या में प्रतिवर्ष स्वयं आयें तथा सबको साथ लायें। यह जैन धर्म की प्रभावना में मील का पत्थर बनेगा और भावी पीढ़ियां इसका सदैव स्मरण रखेंगी।
दो पुस्तकों का विमोचन-
विद्वत् परिषद् के अधिवेशन में परिषद् द्वारा प्रकाशित दो पुस्तकों का विमोचन हुआ। 
विद्वद्-विमर्श- विद्वत् परिषद् का मुखपत्र ‘‘विद्वद्-विमर्श’’ वर्ष 4 अंक 14-15 का विमोचन हुआ, जिसमें विद्वत् परिषद् द्वारा सम्पन्न गोष्ठियों व अन्य कार्यक्रमों के अतिरिक्त खंदारगिरि आदि की समाचार सहित बहुरंगी चित्र प्रकाशित हैं।
शांतिविधान- विद्वत् परिषद्  की ओर से प्रकाशित सर्वाधिक प्रचलित श्री ताराचंद रेवाड़ी कृत हिन्दी शांति विधान का विमोचन किया गया। जिसके पुण्यार्जक श्री विनोद कुमार जैन बड़ौदा हैं।
-डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर

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